"ठुमक चलत् राम चंद्र, बाजत पैजनियां
खैर छोड़िये ये सब, भई विकास है " कभी न कभी तो आएगा ही" आज नहीं कल
ठुमक चलते राम चंद्र....... "
अक्सर राजनीतिक गलियारों में घूमती अयोध्या और अयोध्या के राम और राम की अयोध्या, सबके दिल में छायी है ।
टी.वी. पे बैठा एंकर हो, या संसद में बैठी हुकूमत , चाय की दुकान पर बैठे रहीम चचा हों या फिर दिल्ली में अपने आंगन के कृत्रिम झूले पर झूलती मिस लोरी मेमसाब हों,
सभी इससे अच्छे से परिचित हैं... हों भी क्यों ना
अटक से कटक तक फैले भारत के लाल का अंगना है ये..
सभी इससे अच्छे से परिचित हैं... हों भी क्यों ना
अटक से कटक तक फैले भारत के लाल का अंगना है ये..
ये 'शब्द' सिर्फ शब्द नहीं हैं, साहब!
ये है, "इमाम-ए-हिंद " की जन्मभूमि....
ये है, मर्यादा के शिरोमणि भगवान राम की माँ...
पर जानने का मन होगा ना.. कि यहाँ हम काहे ऐसी पलिटिकल बातें कर रहे,
काहे याद आए हमें राम...?
कहीं सरकार बनवानी है क्या? या फिर किसी सरकार के गड्ढे खोदने हैं?
कहीं सरकार बनवानी है क्या? या फिर किसी सरकार के गड्ढे खोदने हैं?
या हम किसी चैनल पर आए हैं, विशेषज्ञ बनके.?
असल में ..आज कल चल रही चर्चा के दौरान जब मैं अयोध्या की सड़कों पर था, तो सड़के सवाल कर रही थीं ..
और मैं इतराते हुए जवाब देने की कोशिश.....
और मैं इतराते हुए जवाब देने की कोशिश.....
आप कभी अयोध्या जाएंगे तो, रास्ते में हड़बड़ाहट में खड़ा रिकाबगंज मिलेगा, वही खड़ा था बिल्कुल मैं...
अब तो रेडलाइट भी लग गई है और जबसे लगी हमने परिवर्तन देखा है। लोगों में भी और नजारों में भी...
आमतौर पर दिल्ली जैसे बड़े शहरों में रेडलाइट मजबूरी लगती है पर भइया वहाँ अयोध्या में..
अरे हुआँ तो जैसे दिवाली के चिराग जला होय... राम जी भला करैं बाबू लोगन के।
तकनीकी के गर्भ से निकली इस लाइट के बारे में अनेको व्याख्याता मिल जाएंगे, वैसे मैंने भी पहली बार देखा तो मुंह से यही निकला.... चलो काम तो अच्छा हुआ।
वहीं खड़े रामसुखदास चाचा के हिसाब से "नइकी लइटिया बड़ी बेहतरीन लागत है हो"
अरे हुआँ तो जैसे दिवाली के चिराग जला होय... राम जी भला करैं बाबू लोगन के।
तकनीकी के गर्भ से निकली इस लाइट के बारे में अनेको व्याख्याता मिल जाएंगे, वैसे मैंने भी पहली बार देखा तो मुंह से यही निकला.... चलो काम तो अच्छा हुआ।
वहीं खड़े रामसुखदास चाचा के हिसाब से "नइकी लइटिया बड़ी बेहतरीन लागत है हो"
और फिर पान की पीक मुंह में भरे आरिफ़ चचा भी माशाअल्लाह कहके तारीफ कर दे रहे थे।
खैर छोड़िये ये सब, भई विकास है " कभी न कभी तो आएगा ही" आज नहीं कल
हाँ तो मैं सड़क पर था..
सड़क की किनारे खड़े पेड़ से झूलकर एक डाली गिरी और पूछा - " ए बेटा!! ई हमरी अयोध्या इतनी अचछी है फिर इसको मारकाट वाली काहे कहते हैं? "
मैंने सोचा आवाज़ मेरे अंदर से होगी..
इग्नोर किया....
इग्नोर किया....
फिर बोली - " अरे भइया ई काम्युनल का होत है? और अयोध्या में हिन्दू मुस्लिम मामला कबसे होय लगा? "
मैं अब निश्चित था कि जवाब दे ही दूंं और बता दूँ कहना
क्या चाहता हूँ -" अरे वो मंदिर मस्जिद का बवाल है ना, तो वही चैनल वाले चिल्ला रहे, बाकी यहाँ माहौल तो वही है, सरयू जैसा कलकल "
पर बता दो ना कैसे नहीं है साम्प्रदायिक?
" अरे अम्मा! रिकाबगंज में हुए दुर्गा पूजा याद है न? बारावफात का जुलूस भी तो देखी रही ना यहीं से? "
और वो "गुरूनानक जी का लंगर? "
अरे याद है तुम्हे?
ज़रा याद करो फतेहगंज की खीर गली....
जहाँ एक ओर संतोषी माता के मंदिर की घंटियाँ बजती हैं, तो बगलिया में हर शाम की इबादत को हांथ ऊपर उठते हैं।
और हाँ अगर असली अयोध्या देखना है तो गली कूचे चलो...
यहाँ दूर टी.वी. पे टुकूर टुकुर से कैसे पता चले कि कहाँ है पैजनियां और कहाँ दौड़े राम.....
_मैंने इतना कुछ बोलकर स्कूटर की किक मारी....
अपनी पतली एक लहरी काया पर ज्यादा बोझ डाल नहीं सका.. तो खड़ा हुआ और कस के मारा किक..
और स्कूटर चालू हो गया।
"धुकधुक धुकधुक.... और की की की... करता आधा बजता हार्न आगे बढ़ा"
और फिर अयोध्या वैसे ही मतवाली चाल चल रही थी,
आगे बढ़े तो सलाम किया पुरखों को....चौक के बीचोंबीच हमारा " पुरखा " खड़ा रहता है..
नाम है " घंटाघर "
और अगर कभी भूख लग जाए तो वहीं कचौड़ी और जलेबी बड़ी बढ़िया मिलती है।
"एकदम मीठी और चाशनी भरी.... "
मैंने भी दस रूपये की एक पत्ता कचौड़ी ली.. ( बाद में दो बार एक्सट्रा मीठी चटनी के साथ) हाथ में तो चिपचिपाहट लग गई,
तो कुछ नहीं स्टेपनी के रबड़ में दो तीन बार रगड़ लिए, बस फिर चकाचक...
और अयोध्या आगे बढ़ रही थी।
( अयोध्या के बारे में हमारी अपनी नज़रों ने जो कुछ जाना है आंगन में पल बढ़ कर जाना है, तथ्य भले ही अलग हो जाएं, पर भावना एकदम ओरिजिनल वाली है.
और हाँ यहाँ सारे पात्र काल्पनिक हैं बाकी पूरी लाइन तो याद होगी!!!
फिर मिलेंगे अयोध्या के एक और चेहरे के साथ...
राम राम🙏
#बड़का_लेखक
ज़रा याद करो फतेहगंज की खीर गली....
जहाँ एक ओर संतोषी माता के मंदिर की घंटियाँ बजती हैं, तो बगलिया में हर शाम की इबादत को हांथ ऊपर उठते हैं।
और हाँ अगर असली अयोध्या देखना है तो गली कूचे चलो...
यहाँ दूर टी.वी. पे टुकूर टुकुर से कैसे पता चले कि कहाँ है पैजनियां और कहाँ दौड़े राम.....
_मैंने इतना कुछ बोलकर स्कूटर की किक मारी....
अपनी पतली एक लहरी काया पर ज्यादा बोझ डाल नहीं सका.. तो खड़ा हुआ और कस के मारा किक..
और स्कूटर चालू हो गया।
"धुकधुक धुकधुक.... और की की की... करता आधा बजता हार्न आगे बढ़ा"
और फिर अयोध्या वैसे ही मतवाली चाल चल रही थी,
आगे बढ़े तो सलाम किया पुरखों को....चौक के बीचोंबीच हमारा " पुरखा " खड़ा रहता है..
नाम है " घंटाघर "
और अगर कभी भूख लग जाए तो वहीं कचौड़ी और जलेबी बड़ी बढ़िया मिलती है।
"एकदम मीठी और चाशनी भरी.... "
मैंने भी दस रूपये की एक पत्ता कचौड़ी ली.. ( बाद में दो बार एक्सट्रा मीठी चटनी के साथ) हाथ में तो चिपचिपाहट लग गई,
तो कुछ नहीं स्टेपनी के रबड़ में दो तीन बार रगड़ लिए, बस फिर चकाचक...
और अयोध्या आगे बढ़ रही थी।
( अयोध्या के बारे में हमारी अपनी नज़रों ने जो कुछ जाना है आंगन में पल बढ़ कर जाना है, तथ्य भले ही अलग हो जाएं, पर भावना एकदम ओरिजिनल वाली है.
और हाँ यहाँ सारे पात्र काल्पनिक हैं बाकी पूरी लाइन तो याद होगी!!!
फिर मिलेंगे अयोध्या के एक और चेहरे के साथ...
राम राम🙏
#बड़का_लेखक
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