Tuesday, September 17, 2019

मिशन चंद्रयान 2 असफलता नहीं है..

चंदा मामा दूर के, पुए पकाए दूध में... .

बचपन में यदि आपने भी बिस्तर पे लेटे - लेटे  ये अमर गीत सुना है तो समझ जाएंगे कि मैं किसकी बात कर रहा.

 हमारी भारतीय संस्कृति में हम इतने अक्खड़ हुए हैं कि जिस चांद पर संपूर्ण संसार जाने की जद्दोजहद में लगा है,  हमने उस चांद को थाली में उतार दिया था, पर मोहन की उत्सुकता शांत नहीं हुई..


कुछ ऐसा आज भी है, विगत कई महीनों से पूरा हिन्दुस्तान एक नए सपने को साकार होता देख रहा था और वो था... चंद्रयान 2
 इस मिशन के प्रक्षेपण से लेकर लैंडिंग तक का सफर बड़ा विचित्र रहा।
मुझे याद आ रहा कि  लैंडिंग के कई महीनों पहले से पूरा भारत एक साथ ऐसे प्रतीक्षा कर रहा था, जैसे मैं बचपन में होली दिवाली का बेसब्री से इंतज़ार करता था।

ये मिशन कई मायनों में अनोखा था। हमारी नज़र उस हीरे को पाने की रही जिस तक पहुँचना नामुमकिन तो नहीं पर  हां मुश्किल बहुत था।
यहाँ तक कि दुनिया की बड़ी स्पेस एजेंसी नासा ने भी यहाँ जाने को सोचा नहीं था अभी तक..

हमने चंद्रयान के द्वारा चांद के दक्षिण ध्रुव को अपना निशाना बनाया और दस बरसों की लम्बी मेहनत से पहुँचे वहाँ  पर कुछ ठिठक कर...
मैंने क्या देखा और महसूस किया उस दिन जो आपने किया बस वही .. देखिए तो ज़रा....




" वो रात बड़ी खुशी लेके आई थी , हर समाचार चैनल और सोशल मीडिया कार्यालय से यही न्यूज़ प्रसारित थी,
धड़ाधड़ व्हाट्सएप पर चलते मैसज और ट्विटरिया समाज के सदस्य, कुछ ब्लू टिक वाले अकाउंट और कुछ ऐसे ही मेरे जैसे लोग बार बार बताए जा रहे थे.....
 कि भइया आज रात में सोना नहीं है, आज तो समझो एकदम मजा आए वाला है...".

असल में रात में जगने को लेकर मचे इन विचारों ने मुझे भी उत्सुक किया कि जगता हूँ थोड़ी देर...
फिलहाल थोड़ा पढ़ाई लिखाई कर के जब बिस्तर पे लेटा तो याद आया कि आज तो  " राष्ट्रीय  रतजगवा " है हो....

तुरंत 7.4 इंच का गतिमान  टी.वी. चलाया और तकनीक का श्रृंगार तकनीक की मदद से देखने लगा।

       
   "12 : 30 हो रहे थे और शायद कुछ समय बाकी था"
 फिर भी हर पल बहुत रोमांचक करने वाले थे, और फिर इसी बीच हमारे पी. एम. सर पहुँच चुके थे, ( नाम जगत व्याप्त है)
और फिर ...

और लगभग  1 बजे से संचालन प्रारंभ हुआ

 "विक्रम की स्पीड लगातार कम की जा रही है"
" विक्रम चंद्रमा की सतह से मात्र 30 कि.मी. है"
 (और हाल में तालियाँ बजती हुई )

"और अब मात्र 10 कि.मी. ... "
"सभी वैज्ञानिकों के चेहरे पर चमक "
"प्रधानमंत्री जी भी तालियाँ बजा कर अभिवादन करते हुए "

"मात्र 5 कि.मी. शेष.. सभी हर्षित मुद्रा में "

ये लगातार कमेन्ट्री इसरो के कार्यालय से हो रही थी और मेरी धड़कन बढ़ रही थी, मन इतना रोमांचित था और  उम्मीद तो सातवें आसमान पर।
 उस समय न केवल विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र आगे बढ़ रहा था और अरबों लोग देख रहे थे बल्कि पूरा विश्व नज़र गड़ाये बैठा था।

अगले दो तीन मिनट बहुत बड़ी भूमिका निभाने वाले थे,
और ऐसा ही हुआ ,
लगभग 2.4 कि.मी. पर कुछ गड़बड़ हुआ
और विक्रम इसी बीच अपने निर्धारित मार्ग से भटक गया....

ये बहुत दुखदायी था,
सबके हंसते चेहरे मायूस हो गये...
सब फिर से उम्मीद लगाने लगे, पर कुछ न हो सका...
और अपनी दुखभरी आवाज़ से ऐलान हो गया कि विक्रम से हमारा सम्पर्क टूट गया है।

चारो तरफ सन्नाटा था,
मैं निराश हो गया, पल भर के लिए तो नकारात्मकता आ गई मेरे मन में, दुखी हो गया,
इसरो सेंटर में सन्नाटा था, सब मायूस हे हो गये  पर फिर तस्वीरें आई और ...

उसी सन्नाटे में पूरे भारत की महक, प्यार, स्नेह, समर्पण को प्रणाम  इसरो सेंटर तक पहुँच गया।

उनका मायूस चेहरा लाज़मी था, मेहनत के बात परिणाम अपेक्षित न हों तो ये स्वभाविक तो था।
पर उनके साथ हिंदुस्तान खड़ा था।
आज जैसे कश्मीर का प्रेम, उत्तर मैदान को पार कर सतपुड़ा और महाभारत की दीवारों को लांघ चुका था... और जाकर बह चुका था दक्कन के किनारे खड़े अपने सिपाहियों के गोदी में।

आज वहाँ सब पहुँच तो न सके, पर सवेरे जब निर्लिप्त प्रकृति का त्यागमय समर्पण अपने बांध रोक ना सका और फूट पड़ी कुछ बेहतर करने की  जिजीविषा, तो सामने दो कंधों में पूरा हिन्दुस्तान खड़ा था ....
हमें गर्व ही नहीं , अगाध प्रेम है इनसे, इनके समर्पण से
विक्रम पहुँच न पाया पर हमारा मिशन सफल हो गया।
हम पहले देश बने जो दक्षिणी ध्रुव पर गया और आगे और आगे जाएंगे....

जय हिंद


#बड़का_लेखक
#शिवम्_शर्मा

         


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