Saturday, August 8, 2020

कोदंड का अर्थ क्या है ?



सदियों से बहुप्रतीक्षित श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण कार्यक्रम का शुभारंभ अयोध्या में हुआ. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने मंदिर निर्माण के लिए शिला पूजन एवं भूमिपूजन किया. कार्यक्रम का आकर्षण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रधानमंत्री को दी गई एक भेंट भी रही. वह भेंट थी - कर्नाटक मूर्ति निर्माण शैली में बनी कोदंड राम की प्रतिमा . 

आइए जानते हैं कि कोदंड से आशय क्या है ? 

Sunday, July 5, 2020

सपने सच नहीं होते..

   म

               
                               
 
     
     कनेर के पीले फूल रात में चमक नहीं रहे थे. पर दूर से आते हरई की लालटेन से फूल चौंधिया से गए
और कनेर ने मुँह छुपाना चाहा...

" का हो बच्चा! नींद नहीं आवत है का " , कनेर के पेड़ से सटी सरिया में बच्चा बंधा था. हरई उसे अधिकांशत: 'बच्चा ' से सम्बोधित करता. पर उसका असली नाम बरखू था. बरखू यानि.... हरई का बैल.

पिछले सावन में जब बादल गरज के बरस कर चमक मार रहे थे. तो हरई के साथ बरखू और बरखू के साथ कन्नू भी रामलाल के खेत की ओर गया था. कन्नू हरई का दूसरा बैल था...... बरखू का जोड़ीदार!
उस रात दोनो साथ नाले गए. साथ ही खेत गये.
परंतु बरखू अकेले ही लौटा था...आज तक अकेले ही है.

" पार साल तुम्हार भाई भी अगर दुई मिनट कै समय रूक जात तो राम कसम हम परान ना जाय देते कन्नू के . " हरई आँखों के किनारे से जीवनरस को पोछते हुए बुदबुदा रहा था.
  बरखू को मच्छर हैरान कर रहे. उसकी पूँछ जहाँ तक आती, वहाँ तक तो ठीक! पर पूँछ के हटते ही मच्छर ऐसे हमला बोलते. जैसे सरकारी आफिस में बड़के अधिकारी के जाने के बाद चपरासी और छोटे बाबू लोग घूस की रकम पर.

बरखू का जीवन अब कनेर और खेत तक अकेला था. हरई आता था बीच बीच में कुछ खिलाने. आज रात में मेले से गन्ने की खोई बिनकर लाया है. और पीले कनेर की महक से अनजान बरखू मजे से खा रहा.


" जय हो राम, मेरे राम! तोहरे सहारा "

" जय जय जय गिरराज किसोरी , जय मुख चंद... द "

हरई ने चारपाई के नीचे हाथ डालकर लोटा निकाला. लोटे के अंदर से झांकते पानी और उस पर पड़ी माटी से हरई अनजान था. संवाद ना करते हुए उसने सीधे मुँह भर पानी अंदर किया.
फिर, " गड़गड़..... गड़गड़ ... लुदड़ लुदड़ "
हरई ने सामने छपरा के बल्ली पर बड़ी लम्बी थूक मारी. थूक बे निकली लार उसके धोती पर भी गिरी.
कुछ क्षणभर में लार की छोटी बूंद ऐसे फैली जैसे बेकारी.

" जय हो बिहारी बनवारी , तोरी महिमा न्यारी "
हरई की सुबह हो चुकी थी. ओसारे में बने चूल्हे पर कल रात का बना भात रखा था. चूल्हे कि राख पर सीत पड़ी थी. चूल्हा भी पसीज गया था.

हरई आज फिर रामलाल के खेत में जाने से पूर्व बरखू की व्यवस्था करने पहुंचा.

 बरखू वहीं कनेर के पास खूंटे में बंधा. कटोरे में से मुट्ठी भर भात निकाल हरई अपने बच्चे की ओर बढ़ रहा था. उसमें भी दूर से आते मालिक के आने पर ममता , प्रेम, करुणा सारे भाव एकसाथ उमड़ने लगे. बरखू की अवस्था मानो ऊधौ को देखती गोपियों सी हो गई थी. बेचारा खूंटे को केन्द्र बनाकर पूरा वृत्त खींच रहा था.

पर बरखू का यह निश्छल प्रेम मालिक से ज्यादा भात के प्रति था. साथ में कुछ हरयरी भी थी. हौदा में दो बाल्टी ठंडा पानी भरके हरई ने बरखू के पीठ पर हाथ फेरा.

  हाथ डरने भर से उसकी झुर्रियों को नवयौवन मिल रहा हो जैसे. पिता को पुत्र , माँ को लाल, आदि आदि उपमा और अन्य अलंकार स्वादानुसार.....
   बरखू ने एक बार में लब्ब से सारा भात मुँह में भर लिय और लम्बी सांस ली.
बरखू चंचल नहीं सौम्य जीव है. बरखू स्वामी की सर्वांग अवस्था में वफादारी के मानदंड लिख रहा है.
और अब जीभ बढ़ाकर कटोरा छीनना चाहता है.

हरई ने आवाज़ लगाई, " हा.. हाँ... हाॅ.. हट्टट्ट "
बरखू आंखें लुपलुपाता पीछे हटा. नित्य प्रति चलती दिनचर्या आज फिर यही से शुरु हुई.


 " अरे चाचा ! निरपाल बाबू पूछत रहे आपको. शायद फसल दांवै को गोरू नहीं मिल रहे. अगर बरखू चंगा हो तो खेद दो उधर." दूर से आते रमफल ने हरई को सूचना दी.

निरपाल बाबू गांव के सरपंच हैं. तीस साल से यानि, छे बार से परधानी उनके खेत की सरसो हो गई. अब तो परधानी के चुनाव और परिणाम दोनों बस औपचारिकता की फुनगी बन गई है. हर बार परधान परधान ही रह जाते.

हरई मनै मन बड़बड़ाते, धोती समेटे निरपाल बाबू के चौखट पर पहुँचा. उस चौखट पर जहाँ मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग भी थूक अंदर कर गीली हंथेली सुखाने लगता है..

गरीबी का उपहार देते ही जानो भगवान ऊपर से स्वाभिमान का टीका लगा देते हैं . हरई भी इसी रस से परिपूर्ण होकर चौखट पर पहुंच गया था.

चौखट पर बंधे गोरू और हारवेस्टर मशीन की चौड़ाई को चीरते हरई ने भर्राई आवाज़ में कहा, " जय राम जी की परधान जी.. रमफल खहतरहा " हरई ने तीन दफे आवाज़ लगाई.

परधानी के तगमे और चमचमाती शान से ऊंघते परधान जी ने बनियान पर धोती धारण कर दर्शन दिए.
और बरखू के प्रति ललचाई नजर फेरी - " अरे हरई! तोर बैल बँधवा दे इहाँ, हरवाहन से कहके. दोगुना दाम मिली..... "
परधान बात पूरा करने वाला था कि पीछे से कुछ आवाज़ आई.

 हरई का माथा ठनका. उसके कान जलने लगे थे.
 पीछे से बरखू की आहट मिल गई.... " बरखू चीख रहा था? "

दूर से खीसें निपोरते परधान के मुस्तंडों ने बरखू पर कब्ज़ा कर लिया था. उस पर बीच बीच में परधानी बेंत चल रही थी. परधानी पाश में बंधा बरखू असहाय सा हरई की ओर देख रहा था . मानो भात ढूँढ रहा हो.. या फिर कुछ और.

हरई गरीब था. हरई बुजुर्ग भी था. पर ऊपर से नीचे आते समय उसके खाते में जो रस टपका था. वो अब जाग गया. " बरखू दुधमुँहे बच्चे सा अब भी चीख रहा था. " और वो स्वर उसके स्वामी के कान चीर रहे थे.

हरई ने झटपट लपक के गंडासा उठाया. और परधान को दुलत्ती फँसाकर गिरा दिया. परधान नीचे चित्त , की समर्थक दौड़ पड़े. हरई ने गंडासा मुंडी पर सटा दिया.

हरई ने सिनेमा नहीं देखा था. पल भर में सिनेमा में झूठे अभिनय से अभिनेता जैसे हीरो कहलाने लगता है. हरई ने वास्तव में ऐसा साहस दिखाया... कुछ कुछ हीरो सा.

मुरचाये गंडासे की फाल पर परधान की मुंडी लटकी थी. पर अब भी ना तो कटी थी और ना ही परधान मरा था. हरई ने परधान को डराकर अर्द्ध अचेत कर दिया.
 परधान की उंगलियों ने बरखू के पाश खोलने के निर्देश दिए. मुस्तंड दौड़े.

ज्यों बरखू पर बेंत पड़ना बंद हुई. और रस्सी ने पकड़ ढील की....बरखू खरहा सा भागा. इतनी ज़ोर की बाड़ेबंदी में पल रही परधान के सब्जबाग पर घोड़े दौड़ा गये.

बरखू दौड़ कर आज चूल्हे तक पहुँच गया. वह भात नहीं ढूँढ रहा था. डर गया था. परधानी पाश से मिली मुक्ति उसे यम से छूटे पाश सी प्रतीत हो रही थी.....

हरई ने हर्ष में परधान की गर्दन गंडासे से दूर कर दी. यह बात मुस्तंडों में वनाग्नि सी फैल गई. सब हरई की ओर झपटे. आनन फानन में पसीने से भीगे परधान आंतरिक गमन अर गये.

पैसे वालों की दुनिया होती है. पैसे से कानून की तलवार पर सोने की म्यान चढ़वा दी जाती है. पैसा रुपया में बदलता है. रूपया फिर पैसावाला बनाता है. और पैसे की पैमाइश करने में अव्वल पैसेवाले अपने पाले में परलोक ला सकते हैं.

यही सब बुदबुदाते हरई ने सरेंडर कर दिया. कोतवाल आ गए. परधान के गोड़ पकड़ लटक गए, " माफी सरकार.. आप चिंता ना करौ . एकै और बैले दोनो को मूड़ देब . "

कोई फुसफुसाया, " अब तो जेल में बेलन चले. बुढ़ापे कै हांड मांस सत्तू बन जाए. और जनावर भी पड़ा पड़ा अकेले मर जाए "

ये सुनकर हरई कांप गया. उसने आवाज़ लगाई, " अरे राम.... मोरे राम तोरे सहारा.... दुहाई हो....
हमरा बरखू ! "
इतना शोर सुनकर भाय- पटीदार गर आ गए. हरई के मुंह पर छींटे मारे. हरई होश में आया.

" जय गिरधारी हो...... हम सपना देखत रहे".







Sunday, May 24, 2020

कहानी : मां का व्रत

              पूर्णिमा 🌱


" तुम एक ही हफ्ते भर में चार दिन भूखी रह जाओगी, तो शरीर में ना मांस बचेगी ना खून " ,

 हमेशा की तरह फिर से पिता जी ने भृकुटि को सिकोड़कर अपने पौरुषेय शैली में मां पर गुस्सा निकालना शुरु किया.

"अगर दिन रात मैं खट कर तुम लोगों को मन पसंद खाना खिला सकती हूं,  घर का सारा काम खुशी खुशी कर सकती हूं. तो व्रत रखने भर से मैं कमज़ोर नहीं हो जाऊंगी"


अब ये वाला कथन आर्त्त भाव से सदैव अभिनव व्रत विधियों के प्रति समर्पित और सप्ताह का कोई नया दिन किसी ईष्ट देव को अर्पित करने  में तत्पर मेरी माता जी के थे.


दोनो में एक लम्बी नोकझोंक चल रही थी.
उधर से एक चिकित्सक सदृश परामर्श देते रहे कि व्रत अधिक रहोगी तो रक्तचाप इधर उधर हो जाएगा.
कमजोरी आ सकती है, चकरा के गिर सकती हो आदि आदि,   और दूजी भक्ति की महिमा बतातीं...


पर हां, जितना सहज ये सुनने में लग रहा उतना है नहीं.
जब ये दोनो आपस में झगड़ते हैं तो मेरी स्थिति एक खरगोश सी हो जाती है.

यद्यपि मैं खरगोश जैसा सुंदर और आकर्षक नहीं, पर मेरा व्यवहार उसके जैसा हो जाता. 
मैं टुकुर टुकुर इन दोनो को देखता हूं, एक दो बार हस्तक्षेप करना चाहा.
पर इतने में दोनो हाथ उठाकर फिल्मी अंदाज़ में बोल पड़ते, " बच्चे हो बच्चे रहो " .


मैं चुप भी रहा, शायद अपनी इसी कहानी की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा था.  इस बार दोनो की लड़ाई हुई थी पूर्णिमा के दिन.. महीना था ज्येष्ठ का.

चूंकि ज्येष्ठ महीने में गला ज्यादा सूखता है , और शरीर में जल की पर्याप्त मात्रा बनाए रखने हेतु जल का सेवन अधिक करना एक जानी मानी सलाह होती है.


पर मां ज्येष्ठ में पूरे दिन पानी की एक बूंद बिना रह गई थी.   ना तो हमारा निवास स्थान किसी मरुस्थलीय पारिस्थितिकीय तंत्र में है, ना ही जल की शुद्धता का पैमाना गिरा हुआ है.

तो फिर ऐसा क्या था कि पानी पिए बिना पूरा दिन रह गई ? असल में माता जी ने नया व्रत ढूंढ निकाला था : पूर्णिमा व्रत.

जब एक बार मैं सातवीं में था और किसी पूर्वजन्म के कर्मों और मेरे प्रारब्ध के कारण मैं बीमार हुआ.
तो मेरी हालत दिन दिन गलते पौधे सी हो गई थी .

( ध्यान रहे मैं यहां किसी पारलौकिक शक्ति के प्रभाव से हुए चमत्कार का प्रदर्शन नहीं करना चाहता, यह महज मेरा अनुभव है)

मैं केवल बीमार थोड़े ही था मैंने घर की धन दौलत, जमा पूंजी, पिता जी का परिश्रम सबको चूस लेना चाहा था.
फैजाबाद में स्थित कोई चिकित्सक नहीं बचा जहां पिता जी मुझे लेकर भागे ना हों, मैंने और मेरी बीमारी ने मानो मन बना लिया था कि अभी और दौड़ाना है...


यह याद करके आज भी कलेजा भर आता है, जब खड़ी दोपहरिया में बजाज स्कूटर पर मैं दोनो के साथ पूरा शहर घूम आता था.  कितने चिकित्सकों ने तो यहां तक कह दिया कि ये नाटक करता है....

जब ई सी जी, अल्ट्रासाउंड, और खून की ना जाने कितनी जांच होने के बाद भी मर्ज निकले ही ना, तो यह कहना इतना अस्वाभाविक भी नहीं था.         
 अब बात चल पड़ी थी कि लखनऊ और इलाहाबाद के बड़े डाॅक्टर्स से परामर्श लिया जाए.

इलाहाबाद मेडिकल काॅलेज के बड़े पद पर तैनात डाॅ चौहान से नाना श्री ने सम्पर्क साधा, तो एक डेट तय हुई.

मैं वहां भी पहुंच गया...मुझे लेकर पिता जी ही इलाहाबाद आए थे , वहां श्रीमान डाॅ. ने सी टी स्कैन करने को बोला...

पहली बार मैं इस नई मुसीबत से भी दो चार होने जा रहा था.अब तक मुझे इतनी सुई लग चुकी थी कि मुझे आदत सी हो गई थी.

मैं भले ही सातवीं में था पर  पहले सुई लगने भर से रो देता था,  अब तो सुई भी मुझे नहीं डराती थी.
बस अगर माता जी बगल खड़ी रहतीं तो उनकी नम आंखें देखकर मैं भी रोने लगता... पर क्यों ?
 ये मुझे भी नहीं पता.

जब मैं सी टी स्कैन कराने पहुंचा तो मेरे हाथ में एक सुई लगाई गई, फिर उसमें एक लम्बी पाइप सा कुछ लटक रहा था..

मेरे हाथ और पैर कुछ रबड़ सा पट्टा लपेट कर स्थिर कर दिया, और सर के पास गद्दे सा लगाकर मुंडी भी ऐसी कर दी गई कि  हिल नहीं सकती थी.
फिर सामने सफेद सुरंग सी बड़ी सी आकृति थी, उसमें बटन दबाते ही मैं घुसने लगा..

माता जी तो घर पर थीं, उनकी बहुत याद आ रही थी...
मैंने रोने लगा तो डाॅक्टर ने कहा ,कुछ नहीं होगा.

जब वहां से सबकुछ निपट कर रिपोर्ट आई तो मैं बिल्कुल ठीक था, डाॅक्टर ने कहा ये तो बिल्कुल चंगा है.

फिर भी मैं अभी भी सही नहीं हुआ था, जब सारी कसर पूरी कर ली गई तो मैं वापस घर आया. 
अब एक अस्त्र बाकी था जो चल सकता था...

वह था मां का  ' भक्ति अस्त्र ' .
एक रोज जब मैंने पूरे दिन आंख नहीं खोली, कुछ नहीं खाया था. तो मां ने घर के मंदिर की सभी प्रतिमाओं से मुंह मोड़ने की ठान ली.

कह दिया कि ठीक करना है या नहीं, सब तुम जानो... मंदिर की ओर देखकर , भरी आंखों के साथ ये सब बोला.
( आपको ये बड़ा फिल्मी या ड्रामैटिक लग सकता है, सही भी है... पर यह बहुत सामान्य था)


मां ने उस दिन मंदिर पर पर्दा डाल दिया, तो शाम तक खुला नहीं. किसी ने कहा दवा के साथ दुआ करके देखो..

ये अंतिम विकल्प था ही, मां की व्रत में रुचि और नवोन्मेषी सोच ने एक नये व्रत को तलाश लिया था...
 वही : पूर्णिमा  व्रत,
मां ने प्रतिज्ञा की कि तबियत सामान्य हो जाए तो मैं यह निर्जला व्रत करूंगी.... और करती रहुंगी.

इसी बीच कुछ आयुर्वेद और होम्योपैथी दवाएं भी प्रयोग की गई , ग्रह दशा शांत कराने के कई यज्ञ कराए..
श्री महामृत्यंजय मंत्र जाप, रुद्राभिषेक भी कराया गया... मन्नतों की बौछार हो गई  .
कई रिश्तेदारों ने बाला जी , वैष्णों देवी की यात्रा का संकल्प करा दिया...
कुछ ने अलग अलग मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाने, दर्शन कराने का संकल्प किया.

मां का पूर्णिमा संकल्प था ही...
मैं अब ठीक हो रहा था..   मां ने संकल्प यह भी लिया था कि हर महीने की पूर्णिमा पर श्री सत्यनारायण भगवान की कथा भी होगी..

शुरु हुआ एक नये व्रत का सिलसिला  , हर महीने पंडित जी आते, मां एक दिन पहले से समान मंगवाती  और  हर पूर्णिमा को
इति श्री स्कंदपुराणे रेवाखंडे सत्यनारायणव्रत कथायां .....

पूरे एक साल तक 12 कथा हुई, फिर अंतिम बार बारह आचार्यों को विधिवत् भोजन करा कर पूर्णाहुति दी गई.

पर पुर्णिमा व्रत रुका नहीं..
जब एक साल पूरे हो गए तो घर पर अब पंडित जी की जगह मैंने कथा कराना शुरु किया...

पूरी पोथी, नियम के साथ  ,
कुछ त्रुटियां हुई पर सीख गया.

फिर पूरे तीन साल तक मैंने घर पर माता जी को कथा सुनाया हर महीने...
आज भी मां का व्रत चल रहा है, करीब नौ साल हो गए..

मां के व्रत ने मुझे जीवनदान दिया या नहीं ये तो नहीं जानता.
पर सकारात्मकता का पुंज दिया है,
ना बुझने वाली आशा की लौ दी है, बहुत कठोर विश्वास दिया है.
बहुत कुछ दिया है..


 मेरी कहानी " मां का व्रत " का यह दूसरा अंश है, आप सभी की प्रतिक्रियाओं, टिप्पणियों, त्रुटि सुधार, आलोचनाओं का स्वागत है. सब मेरे लिए पुट निवेश का कार्य करती हैं)

आपका  #बड़का_लेखक 😋

नज़र

कोदंड का अर्थ क्या है ?

सदियों से बहुप्रतीक्षित श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण कार्यक्रम का शुभारंभ अयोध्या में हुआ. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने मंदिर निर्माण ...